शनिवार, 21 मार्च 2009

नक्सिलयों की रीित-नीित और उद्देश्य-अंितम

तीसरा लच्छय समानांतर सरकार का होता है


गुिरल्ला युद्ध के योजनाबद्ध िवकास का लच्छय हािसल करने के बाद नक्सली संगठनों का तीसरा लच्छय होता है इलाके िवशेष में सामानांतर सकार नाने की। यह वो िस्थित होती है जब राजसत्ता की हुकूमत उस इलाके में िसफॆ पऱताक बनकर रह जाती है। इसी मुकाम पर नक्सली इलाका िवशेष को स्वतंतर घोिषत करते हैं। जैसा िक िपछले िदनों झारखंड के चतरा िजले में नक्सिलयों ने िकया भी है। सामानांतर सरकार की हैिशयत में अाना दीघॆकालीन लोकयुद्ध के दौरान छोटे-छोटे इलाकों पर कब्जा कर सशस्तर कऱांित के मागॆ पर पुनः िचिह्नत छोटे इलाके पर ज्याा दा धायान िदया जाने लगता है। इस दौरान नक्सली रणनीित पऱभाव और सबक पर भी मंथन का दौर चलता रहता है। पऱयास होता है िक जन गोलबंदी एकीकृत बना रहे। हालांिक कई बार एेसा भी होता है िक स्वतंतर करार िदये गये इलाके में राजसत्ता अपने सैन्य बल के जिरये पुनः अपना पऱभाव कायम कर ले।इस िस्थित के िलए नक्सली पहले से ही एक कायॆयोजना पर काम करते रहते हैं तथा दबाव की िस्थित के हटते ही पुनः पूवॆ की िस्थित में अा जाने का पऱयास करते हैं। रूस में लेिनन और चीन में माअो की सश्स्तर कऱांित से अिभभूत नक्सली कऱांितकारी शिक्तयों को उभारने के साथ इसका भी पऱयास करते हैं िक सामािजक-राजनीितक धऱुवीकरण की पऱिकऱया काफी तेज हो। इससे राजसत्ता का संकट गहराता है और उसके भीतर का अंतरिवरोध ज्यादा गहरा और तीखा होता जाता है। नक्सली रणनीित यह होती है िक समस्याअों के समाधान में सरकार िवफल साित हो और उसकी चौतरफा अालोचना हो। यह एक एेसी िस्थित होती है िजसमें सशस्तर जनयुद्ध िबना बाधा के तेजी से मुकाम की अोर बढ़ता है।तब सबसे िनचले और अासान स्वरूपों से शुरू कर सशस्तर छापामार रणनीित उच्चतर िस्थित की अोर तीवऱता से पऱगित करता है।इसी मुकाम पर नक्सली रणनीितकार पऱचार और पऱकाशन संगिठत कर जनयुद्ध के पछ में अंतरराष्टीय िरश्तों को बनाने और फैलाने की अोर बढ़ते हैं। पऱयास यह होता है िक िवदेशी संबंधों के जिरये अपने पछ में राजनीितक समथॆन हािसल िकया जाये। यही िसथित रूस और चीन की राजशाही के िखलाफ सशस्तर कऱांित के दौर में भी थी। राजशाही का दमन, फेिलयर और जन िवरोधी रुख ने तब लेिनन और माअो को महानायक बना िदया था। पड़ोसी देश नेपाल में भी यही हुअा और नक्सली नेता पऱचंड अाज बुलेट की जगह बैलेट से राजसत्ता में अाये हैं। भारत में राजशाही की जगह लोकशाही है तथा किमयों-खािमयों के बावजूद जनता को अपनी पसंद की सरकार चुनने का अिधकार भी है। इस बदली पिरिस्थित में नक्सली अांदोलन को लच्छय कब और कैसे िमलेगे, यह अानेवाला समय तय करेगा। लेिकन इितहास गवाह है िक बुद्ध, महावीर और गांधी के अिहंसक युद्ध में ही शािमल होता रहा है।भारत

गुरुवार, 19 मार्च 2009

नक्सिलयों की रीित-नीित और उद्देश्य-३

रलच्छय संधान के िलए अनुमािनत समयसीमा का सहारा लेते हैं नक्सली


नक्सिलयों की दूसरी योजना गुिरल्ला युद्ध का योजनाबद्ध िवकास का मूल मकसद िनकट भिवष्य में खास इलाकों को गुिरल्ला जोन में तब्दील करने करने के िलए अाधार तैयार करना होता है। इसके तहत िविशष्ट इलाके में हिथयारबंद जनाधार बनाने के िलए सैन्य टुकिड़यों की लड़ाकू छमता को उन्नत बनाने और फैलाने पर िवशेष ध्यान िदया जाता है। यही वो समय होता है जब नक्सली रणनीितकार अाधार इलाके में पऱधान जोन, गौण जोन और पऱोपेगंडा जोन में अंचलों को वगीॆकृत करने तथा उसे िचिहनत करने की नीित पर अमल शुरू करते हैं। पहली योजना की तरह ही दूसरी योजना को शुरू करने के पहले छोटी अविध तक तैयारी का काम चलाया जाता है। साथ ही यह मान कर चला जाता है िक नक्सली लच्छय और उसे पऱाप्त करने की पऱकृित को देखते हुए इसके िलए कोई िनयत समय सीमा िनधाॆिरत नहीं िकया जा सकता। इसिलए अनुमािनत समयसीमा को ध्यान में रखते हुए इसके अागे के िलए भी नक्सली तैयारी बनाये रखने की रणनीित अपनायी जाती है। नक्सली रणनीितकारों का यह भी मानना है िक शुरुअाती दौर में दुश्मनों (राजसत्ता) को सुराग िमलने से उन्हें झटका लगने की स्थिित रहती है। इसे ध्यान में रखते हुए योजना के महत्वपूणॆ तत्वों में अांिशक बदलाव लाने की नीित भी साथ-साथ चलती रहती है। इसी दूसरे दौर की नक्सली कायॆयोजना में ही बड़ी नक्सली कारॆवाइयों को अमली जामा पहनाया जाता है। इसमें दुस्साहिसक सैन्य कारॆवाइयों के जिरये छापामार िविध से पुिलस और दबंग लोगों के हिथयार जब्त िकये जाते हैं और उस हिथयार से खुद को ज्यादा अाकऱामक बनाया जाता है। इस योजना के अविध के दौरान स्थानीय जीिलमों, मुखिबरों और अातंक के पयाॆय बन चुके िचिह्नत पुिलसकिमॆयों में से कुछ को चुनकर खात्मा िकया जाता है। साथ ही घटनास्थल पर परचा छोड़ खात्मा की वजह का खुलासा िकया जाता है। सैन्य कारॆवाइ के साथ जनगोलबंदी और पऱचारात्मक उद्देश्यों पर भी ध्यान रखा जाता है। इसके तहत खुले और गुप्त तरीके से रजनीितक, अािछॆक, सामािजक और सांस्कृितक गितिवििधयां बड़े पैमाने पर चलायी जाती हैं। दूसरी योजना के तहत नरसंहार, पुिलस और सामंतों पर हमले की पऱितिकऱयास्वरूप राजसत्ता ज्यादा कठोर और पऱितशोध की भावना से कारॆवाई करता है। इससे नरसंहारों और हमलों की घटनाएं कई गुणा बढ़ जाती हैं। पुिलिसया अॉपरेशन बड़े पैमाने पर शुरू होता है। इस िस्थित में नक्सली पूवॆ िनधाॆिरत रणनीित गुिरल्ला युद्ध के तहत बचाव और अाकऱमण करते हैं। वहीं िविभन्न वगोॆ को गोलवंद करने के िलए कई फऱंट नक्सली िहत में कानूनी और मानवािधकार के मसले को उठाते रहते हैं। िवशेषकर शहरी इलाके में कऱांितकारी राजनीित के पऱचार-पऱसार और पऱितिकऱयावादी राजसत्ता की जनिवरोधी कारॆवाइयों को पऱचािरत करने पर िवशेष जोर िदया जाता है।

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तीसरा लच्छय सामानांतर सरकार का होता है

शुक्रवार, 6 मार्च 2009

नक्सिलयों की रीित-नीित और उद्देश्य-२


महत्वपूणॆ पड़ाव होता है नक्सली अाकऱमण पर रोक की रणनीित


नक्सली रणनीितकार अाकऱमक कारॆवाइयों पर रोक और रच्छात्मक कारॆवाइयों पर जोर की रणनीित को दीघॆकालीन जनयुद्ध की राह में एक महत्वपूणॆ पड़ाव मानते हैं। वे मानते हैं िक एेसा नहीं होने पर अारंिभक जन उभार को बगावत समझ बैठने की गलतफहमी हो सकती है। इसिलए इस पड़ाव का उपयोग करते हुए नक्सली जनयुद्ध की दीघॆकालीन चिरतर की समझ को एकदम शुरू में ही िवशेष ध्यान देकर अपने अाधार वगॆ अात्मसात कराना जरूरी मानते हैं। यही वह समय होता है, जब राजसत्ता कठोर कारॆवाई के िलए तत्पर होता है। नक्सली रच्छात्मक कारॆवाई करते हैं। अाधार इलाके में पुिलस तथा अद्धॆसैिनक बलों की बूटों की धमक सुनाई पड़ने लगती है। हाडॆकोर नक्सली रच्छात्मक रणनीित के कारण उनकी पकड़ से दूर रहते हैं और समथॆक वगॆ दमन का िशकार बनता है। पुिलिसया दमन िजतना तीखा होता है समथॆक वगॆ का गुस्सा भी राजसत्ता के िखलाफ उतना ही भड़कता है। इस पऱिकऱया से नक्सली अांदोलन को मजबूती िमलने लगती है। इसे नक्सली रणनीितकार शानदार शुरूअाती सफलता मानते हैं। यही से शुरू होता है सुिनयोिजत रूप से जनसमुदायों को जनयुद्ध के िलए संगिठत करने और राजसत्ता के िखलाफ युद्ध जारी रखने के िलए पऱेिरत करने का काम। इसी मुकाम पर खुला तथा गुप्त गितिविधयों को तेज िकया जाता है। नक्सली रणनीितकार मान कर चलते हैं िक सरकार उनकी खुली गितिविधयों को बािधत करेगी और अमूमन एेसा होता भी है। इस िस्थित में खुली गितिविधयों को चलाने के िलए नक्सली चुहा-िबल्ली का खेल पऱशासन के साथ खेलते हैं। परिस्थित के अनुसार नये रूप और तरीके से गितिविधयों को जारी रखा जाता है। पऱयास यह होता है िक अगऱणी मानवािधकार संगठन और रसूखवाले नागिरक मानवािधकारों के हनन के िखलाफ खुलकर सामने अाये। दूसरी अोर जनजुड़ाव मजबूत करने की रणनीित के तहत जनअदालतों के माध्यम से सुलभ व त्विरत न्याय देना, भूिम और मजदूरी के सवाल पर लोगों को संगिठत करना, मेिडकल कैंप लगाना तथा सवॆहारा वगॆ से तादात्म स्थािपत करने का काम चलता रहता है। यही वो समय होता है जब सरकार नक्सिलयों को मुख्यधारा में वापस लाने की कसरत शुरू करती है। एक सवॆमान्य धारणा बनने लगती है िक नक्सली समस्या का समाधान सरकारी बंदूक नहीं बन सकती। मीिडया से लेकर पऱबुद्ध जन तक मानने लगते हैं िक नक्सली अांदोलन को खाद-पानी देनेवाले कारकों को खत्म करना होगा। भूिम िववादों का िनपटारा, सामंती सोच को बदलना, सवॆहारा को िवकास की मुख्यधारा से जोड़ने और बेरोजगारों को काम देना जैसी मूल समस्याअों की अोर शासन और पऱशासन का ध्यान जाता है। इसपर िकतना अमल होता है, यह अलग बहस का मुद्दा है, लेिकन नक्सली इसे भी एक अदद सरकारी षड़यंतर ही मानते हैं। इसी पड़ाव से शुरू होता है गुिरल्ला युद्ध के योजनाबद्ध िकऱयान्वयन का दौर।
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लच्छय पऱिप्त के िलए तय होती है अनुमािनत समय-सीमा

मंगलवार, 3 मार्च 2009

नक्सिलयों की रीित-नीित और उद्देश्य-१

पहला चरण-शुरू करना और जारी रखाना

दीघॆकालीन जनयुद्ध के मंतर के साथ सशस्तर कऱांित की राह पर चलना शुरू करने और मुकाम की अोर बढ़ने का नक्सिलयों का एक सुिनयोिजत कायॆकऱम होता है। पहला कदम शुरू करना और जारी रखना होता है। दूसरा चरण गुिरल्ला युद्ध का योजनाबद्ध िवकास तथा तीसरा कायॆकऱम पऱभाव, सबक और उसके अाधार पर भावी कायॆनीित का होता है।नेपाल की कम्युिनस्ट पाटीॆ (माअोवादी) की केंदऱीय कमेटी के अंगऱेजी मुख्य पतर द वक्सॆ के अनुसार नक्सली लच्छय की पहली कायॆयोजना शुरू करना और जारी रखना के िलए माकूल स्थान और पिरवेश के चुनाव का होता है। साथ ही यह ध्यान रखा जाता है िक दीघॆकालीन लोकयुद्ध के िलए वहां तीन राजनीितक चरणों को पूरा करने का अवसर हो। मसलन रणनीितक रच्छा, रणनीितक अाकऱमण और रणनीितक अवरोध के िलए जनसहयोग की िस्थित उपलब्ध हो। इसके िलए सवॆहारा बहुल इलाका ज्यादा माकूल बैठता है। इसके पीछे यह तकॆ होता है िक िजनके पास खोने को बहुत कुछ नहीं होता, वही कुछ भी कर गुजरने का साहस रख सकता है। दीघॆकालीन लोकयुद्ध की पहली सीढ़ी रणनीितक रच्छा में भी अनेक कायॆनीितक चरण होते हैं। इसमें मुख्यतः शुरूअात की अंितम तैयारी, गुिरल्ला जोनों का िनमाॆण तथा अाधार इलाके का िनमाॆण शािमल होते हैं। पहली योजना का मूल मकसद जनयुद्ध की िदशा में व्यावहािरक पहल लेना, राजसत्ता पर कब्जा करने के िलए सशस्तर कऱांित की राजनीित से अाम अावाम के िविभन्न िहस्से को जोड़ना, संगठन के मुख्य स्वरूप के तौर पर जनसेना (पीपुल्स अामीॆ) का गठन तथा संघषॆ को धार देने के िलए सशस्तर गितिविधयों को चलाने की पऱिकऱया को शुरू करना होता है। िवदऱोह करना एक मौिलक अिधकार है के में िवश्वास करते हुए व्यवस्था की खािमयों को को अागे कर व्यवस्था और राजसत्ता के िखलाफ जनता को वदऱोह करने के िलए संगिठत करना नक्सली अांदोलन की राह पर रखा गया पहला कदम होता है। शुरू में भौितक उपलिब्धयों पर ज्यादा जोर नहीं होता। िसफॆ यह ध्यान रखा जाता है िक लोगों में उनका राजनीितक संदेश जाये और अिधकतम राजनीितक पऱचार हो। लेिकन व्यावहािरक रूप में जनयुद्ध की शुरूअात व्यवस्था के पऱतीक पुिलस चौकी, सामंत, सरकारी भवन और िहस्टरीशीटरों अािद पर सटीक ढंग से अाकऱमण के रूप में जनयुद्ध की शुरूअात का उदघोष िकया जाता है। इसे लगातार िकया जाता है तािक ज्यादा से ज्यादा पऱचार िमले और उनकी सैन्य औकात का भी खुलासा हो सके। यह समय नक्सली अांदोलन का पऱचारात्मक दौर भी होता है। साथ ही इसकी पूरी कोिशश होती है िक मीिडया जनयुद्ध के भूत को जानने-समझने को उत्सुक हो। इस योजना के उपर कदमता करते हुए नक्सली अांदोलन खुद को इस तेवर में लाता है िक राजनीितक शिक्तयां और राजनीितक मानस की यह बाध्यता बने िक वे नक्सली राजनीित के रू-ब-रू होकर अपनी राय बनाये। इस कायॆयोजना का बुिनयादी मकसद पूरा होने के बाद एक नयी कायॆयोजना शुरू की जाती है। इसमें अाकऱमक कारॆवाइयों को रोकना और रच्छात्मक कारॆवाइयों को जारी रखने की रणनीित अपनायी जाती है।


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एक महत्वपूणॆ पड़ाव होता है नक्सली अाकऱमण पर रोक की रणनीित

सोमवार, 2 मार्च 2009

नक्सली समस्या कारणः २

नक्सली अांदोलन को पुिलस से भी िमला खाद-पानी

यह सुनने-जानने में अटपटा लग सकता है िक अपने दुश्मन नंबर एक नक्सिलयों के फलने-फूलने में पुिलस भी काफी हद तक सहायक रही है। शुरू में जब नक्सली िकसी गांव में वारदात करते थे, तो पुिलस गांव के उन सवॆहारा तबके को टारगेट करती थी, िजनपर मुखिबीरी का सुबहा होता था। दजॆनों लोगों को पकड़ा जाता था और हद तक उन्हें पऱतािड़त िकया जाता था। यह सब गांव के दबंगों के इशारे पर होता था। धीरे-धीरे हालत एेसी बनने लगी िक िकसी गांव में नक्सली कारॆवाई होते ही वहां का सवॆहारा वगॆ पुिलस के अाने के पहले ही घर-बार छोड़ भाग जाता था। नक्सिलयों के िलए यह मन मांगी मुराद जैसी होती थी। बाद में यही सवॆहारा नक्सिलयों के िलए इाका िवशेष में अाधार बनते गये। अाज भी एेसे हजारों लोग हैं, जो नक्सली गितिविध से िबना जुड़े़ पुिलस केस में फंसे हैं। इनमें से अिधकांश बाद में मरता क्या नहीं करता की तजॆ पर िकसी न िकसी रूप में नक्सिलयों से जुड़ते गये। इस तरह नक्सली अांदोलन का दायरा बढ़ता गया और वे हद तक बेकाबू भी बन गये। पुिलस के कुछ अफसर तब भी यह मानते थे िक नक्सिलयों के लोकल कनेक्शन असली मुसीबत हैं। पलामू में रहे एक एसपी ने मुझसे अॉन द िरकाडॆ कहा था गांवों में रहने वाले उनके सभी चौकीदार नक्सिलयों से िमले हैं। पुिलस की ९० फीसदी योजना की जानकारी उन्हें समय रहते िमल जाती है। बताते चलें िक लगभग सभी चौकीदार उस तबके से अाते हैं, िजनका दुराव गांव के बड़े लोगों से होता है। ये जहां गरीब होते हैं, वहीं सवॆहारा तबके से जुड़ाव महसूस करते हैं। बाकी बचे १० फीसदी चौकीदार की िस्थित सांप-छछूंदर जैसी होती है। पुिलस और नक्सिलयों के बीच तालमेल िबठाने में उनकी सांस फूली रहती है। अपने काम के पऱित वफादार चौकीदारों को नक्सिलयों का कोपभाजन भी बनना पड़ता है। पऱत्येक वषॆ अाठ से दस चौकीदारों को नक्सली मुखिबरी के अारोप में मौत के घाट उतारते हैं।

शनिवार, 31 जनवरी 2009

नक्सली समस्या कारणः १


नक्सली समस्या के मूल में सोशल कॉिप्लकेशन


नक्सली समस्या पर अब तक न मालूम िकतनी गोिष्ठयां और सेिमनारों के माध्यम से चचाॆ हो चुकी है, लेिकन अभी तक जड़ पर गंभीरता से िवमशॆ नहीं हुअा है। िविभन्न मंचों से नक्सली समस्या के मूल में गरीबी और अिशच्छा बताया जाता रहा है। अभी तक नक्सली समस्या िनवारण में भी बंदूक से अलग हट गरीबी और अिशच्छा को ही अाधार बनाकर कायॆयोजना बनायी जाती रही है। लेिकन नक्सली इलाके की हकीकत िजतना मैं समझ पाया हूं वह ऊपर के कारणों से अलहदा है। नक्सली उत्थान में इलाका िवशेष का सामािजक बुनावट िकसी भी अन्य कारण से बड़ा कारण रहा है। उसकी जड़ में गरीबी और अिशच्छा खाद-पानी जरूर देते हैं, लेिकन नक्सली समस्या के मूल में वह सोशल कॉिप्लकेशन ही है, िजसने कुछ लोगों को जान की बाजी लगाने को पऱेिरत िकया था। अव्वल तो नक्सली इलाके की कचोटने वाली सामािजक गैरबराबरी वह पहला कारण था, िजसमें पीिड़त और पऱतािड़त का िरश्ता नाजुक मोड़ पर पहुंच चुका था। भूख और गरीबी से जूझना कभी उतनी बड़ी समस्या नहीं थी, िजतना अपने अात्म सम्मान को बचाना। हाड़तोड़ िजंदगी को अपना भाग्य मानने में से भी एक बड़े वगॆ को कभी गुरेज नहीं रहा है। लेिकन जब मामला सामािजक जीवन के ताने-बाने को तहस-नहस करने से जुड़ता रहा, तो अाग लगनी ही थी। अाग जलती रही, िकन्तु वह दवानल नहीं बन रहा था। अाग सुलगानेवाले भी जानते थे िक िजस सामािजक संरचना में वे हैं, वहां अाग लगाकर उसे तापना उनका काम है उसमें जलना नहीं। हर स्तर पर अपना मान मदॆन होता देखना और खून की घंूट पीकर जीवन काटना नक्सली इलाके के एक बड़े बगॆ की जमीनी सच्चाई थी। वे बाबुअों के खेत और घर में काम करते पीढ़ी दर पीढ़ी अपना जीवन गुजारते अाये थे। वे यह भी देखते रहे थे िक उनकी बहू-बेिटयों के साथ क्या कुछ िघनौना होता है। सामािजक िवसंगित, िवडंबना िवकृित का यह दंश झेलनेवाले अपने भीतर की अाग को कभी हवा देने की िस्थित में नहीं थे। नक्सली अांदोलन के नाम पर जब एेसे लोगों के सामने अपने अात्म सम्मान को बचाने के साथ पऱतािड़त करनेवालों को सबक िसखाने का मौका िमला, तो देखते-देखते नजारा बदलने लगा।
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